शिक्षा के काशी कहे जाने वाले कोटा शहर के हेमन्त बड़ोदिया पढ़ाई-लिखाई से इंजीनियर और दिल से कलाकार हैं जो आजकल एक नामी संस्थान मे कंटेंट राइटर और वीडियो एडिटर के रूप में कार्यरत हैं। 2016 मे रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘मीराधा’ में को-राइटर के रूप मे कार्य करने के बाद, कई पत्रिकाओं और अख़बार में अपनी रचनाओं से चर्चा में रहे हैं। अपनी कहानियाँ को दुनिया तक पहुँचाने के क्रम मे ‘ख़ुद के अँधेरे’ उनका पहला क़दम है। भविष्य में भी उनकी कहानियाँ पाठकों के मन मे बसी रहे इसलिए वो निरन्तर नयी कहानियों को काग़ज़ पर उकेर रहे हैं।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्रबंधशास्त्र संकाय से परास्नातक शुभ्रम आपको हर कुछ दिन बाद किसी पहाड़ पर छोटी सी टपरी पर चाय पीते हुए अलसायी हालत में मिल जाएँगे। बहुत कुरेदने पर और कभी कभी झींझोड़ने पर अपनी आभासी दुनिया से बाहर आते हैं और बताते है की वो एक कारपोरेट ग़ुलाम भी हैं। बेतरतीबी इनका शग़ल है और पूछने पर ये हर बार बताते हैं की वो इश्क़ में हैं। पूछने पर “किससे है” वो इशारे से एक चाय और मँगा लेते हैं और बोलते हैं “इससे”। फिर खिलखिला के हंस देते हैं। शौक़िया पेंटिंग करते हैं पर असल में बहुत अच्छी नहीं बना पाते। फ़ेसबुक बायो में उनका परिचय एक ‘खेतिहर’ है और पड़ताल करने पर पता चलता है की लिखने, पेंटिंग करने के अलावा शुभ्रम में एक खेतिहर बसता है। वो मौक़े-बेमौके अपने खेतों में ट्रैक्टर दौड़ाते मिल जाएँगे। और गहराई से पता करने पर पता चलता है की शुभ्रम स्टार्ट अप, बोट सेलिंग और एस्ट्रॉलिजी की गहरी समझ रखते हैं। आजकल मुंबई वासी हैं जहाँ वह मुंबई के एक छोर पर अपनी ठकुराइन, अपने सुपुत्र अहान और एक प्यारा सा बच्चा नोरा के साथ एक खूबसूरत भविष्य रचने की ओर अग्रसित हैं।
मक़सूद अहमद भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के 2016 बैच के हरियाणा कैड़र के अफ़सर हैं। वे बुनियादी तौर पर मेवात इलाक़े से ताल्लुक़ रखते हैं और मेव समाज से पहले IPS होने का फ़ख़्र उन्हें हासिल है। IPS होने के साथ ही लिखने में भी उनकी गहरी दिलचस्पी है। लफ़्ज़ों के ज़रिये बड़ी से बड़ी बात भी शेर, नज़्म, गज़ल और कविताओं की शक्ल में पेश करने में उन्हें महारत हासिल है। उनकी क़लम में नयापन है जो उनकी शायरी को किसी एक ख़ास फ़ार्मेट में ना बाँधते हुए अपनी बात सादे शब्दों में पढ़ने वालों के दिलों तक पहुँचाने की क़ाबिलियत रखता है।
अनन्त गौरव, जिला हरदोई, उत्तर प्रदेश के एक साधारण परिवार से आते हैं। बचपन से हिन्दी से प्रेम के कारण कविताओं और कहानियों से अत्यन्त स्नेह रहा है। मदन मोहन मालवीय, गोरखपुर से विद्युत अभियंत्रण में स्नातक और नयी दिल्ली से व्यापार प्रबंधन में परा स्नातक करने के उपरान्त लेखन में रुझान गया और थोड़ा-बहुत लिखने में हाथ आजमा रहे हैं। ये कविता संग्रह उनकी पहली किताब है। पेशे से एक बैंकर हैं और एक राष्ट्रीयकृत बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं और बैंगलोर में रहते हैं।
अंकित गुप्ता ‘असीर’ का जन्म भोपाल में हुआ। ‘दुःख के रंग’ उनका पहला कहानी-संग्रह है। इसके अलावा उनका एक नज़्म-संग्रह ‘नुमाइश’ और अंग्रेज़ी में अनुवादित कविता-संग्रह ‘Behind The Curtain’, दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अंकित की ग़ज़लें और कविताएँ अनेक काव्य संकलनों में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। इस समय अंकित वृन्दावन में रहते हैं और मानसिक स्वास्थ्य अधिवक्ता के रूप में काम कर रहे हैं। आप उन्हें shayaraseer@gmail.com पर लिख सकते हैं।
बिहार के भागलपुर ज़िले में पैदा हुए प्रणव पेशे से इंजीनियर हैं साथ ही इनकी रुचि कविताओं और कहानियों में है। इनकी परवरिश किसी एक शहर में नहीं बल्कि विभिन्न शहरों के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के छात्रावास में हुई। बड़े-बुज़ुर्ग या बड़े कलाकार अक्सर कहते मिलते है कि रोज़मर्रा की जिंदगी में आपके पास कोई एक कला ऐसी है जो आपको हर दिन के काम से दूर ले जाकर, आपके सुकून को एक नया आयाम दे सकती है, तो उस कला को अपनाओ और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाओ। अतः लेखन एवं पठन में स्वाभाविक रुचि होने के कारण इन्होंने लेखन को अपने सुकून का हिस्सा बनाया। इसी के साथ छात्रावास की आबो-हवा में पलते-बढ़ते, इनके छिटपुट लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। आजकल प्रणव बैंगलोर में रहते हैं और “द ड्राफ्ट पेज (The Draft Page)” नामक एक संगठन में हिन्दी से जुड़े कलाकारों के बीच काफ़ी सक्रिय हैं। ‘एकान्त की गूँज’ इनकी पहली किताब है।
बिहार के भागलपुर ज़िले में पैदा हुए प्रणव पेशे से इंजीनियर हैं साथ ही इनकी रुचि कविताओं और कहानियों में है। इनकी परवरिश किसी एक शहर में नहीं बल्कि विभिन्न शहरों के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के छात्रावास में हुई। बड़े-बुज़ुर्ग या बड़े कलाकार अक्सर कहते मिलते है कि रोज़मर्रा की जिंदगी में आपके पास कोई एक कला ऐसी है जो आपको हर दिन के काम से दूर ले जाकर, आपके सुकून को एक नया आयाम दे सकती है, तो उस कला को अपनाओ और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाओ। अतः लेखन एवं पठन में स्वाभाविक रुचि होने के कारण इन्होंने लेखन को अपने सुकून का हिस्सा बनाया। इसी के साथ छात्रावास की आबो-हवा में पलते-बढ़ते, इनके छिटपुट लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। आजकल प्रणव बैंगलोर में रहते हैं और “द ड्राफ्ट पेज (The Draft Page)” नामक एक संगठन में हिन्दी से जुड़े कलाकारों के बीच काफ़ी सक्रिय हैं। ‘एकान्त की गूँज’ इनकी पहली किताब है।
मजाज़ और मीनाई के लखनऊ में जन्मे, नीरज के इटावा में बचपन बीता, वापस लखनऊ आकर विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की, ग़ालिब की दिल्ली से बड़े शहर की भीड़, प्राइवेट नौकरी का स्वाद, क्रांति का पहला नारा, और पुलिस का पहला डंडा – सारे तजुर्बे पाए। बचपन और डिग्री के बीच अनेक निजी, सामाजिक, राजनैतिक, मानसिक परिस्थितियों पर उम्र और अवस्थानुसार चिंतन-मनन किया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग ले कर काव्यपाठ, वाद – विवाद द्वारा न सिर्फ मंच और मनोरंजन का चस्का लगा, बल्कि रचनात्मकता और लेखन में सुधार और तीक्ष्ण्ता भी आती गयी। कवि सम्मेलनों में जाते रहते थे सो अनेक ख्याति प्राप्त कवियों से मेल-जोल रहा, आशीर्वाद भी पाया। क्रांतिकारी नाना, जमींदार बाबा, किसान पिता और संगीतकार माँ – इन सबकी संगति में अनेकानेक सबक सीखे – जीवन दर्शन से लेकर भौतिक सुख तक, और क्रांति नियोजन से लेकर सरल जीवन यापन तक। लेखन के साथ-साथ इन दिनों बैंगलोर में शायरी से जुड़े हुए कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। नौकरपेशा तो हैं, लेकिन वापस अपने गाँव जाकर खेती करना और पेड़ों की छाँव में बैठे-बैठे ही एक दिन अंतर्ध्यान होने का सपना अभी त्यागा नहीं है। ‘आफ़तनामा’ गौरव की पहली किताब है।