अंकित गुप्ता ‘असीर’ का जन्म भोपाल में हुआ। ‘दुःख के रंग’ उनका पहला कहानी-संग्रह है। इसके अलावा उनका एक नज़्म-संग्रह ‘नुमाइश’ और अंग्रेज़ी में अनुवादित कविता-संग्रह ‘Behind The Curtain’, दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अंकित की ग़ज़लें और कविताएँ अनेक काव्य संकलनों में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। इस समय अंकित वृन्दावन में रहते हैं और मानसिक स्वास्थ्य अधिवक्ता के रूप में काम कर रहे हैं। आप उन्हें shayaraseer@gmail.com पर लिख सकते हैं।
बिहार के भागलपुर ज़िले में पैदा हुए प्रणव पेशे से इंजीनियर हैं साथ ही इनकी रुचि कविताओं और कहानियों में है। इनकी परवरिश किसी एक शहर में नहीं बल्कि विभिन्न शहरों के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के छात्रावास में हुई। बड़े-बुज़ुर्ग या बड़े कलाकार अक्सर कहते मिलते है कि रोज़मर्रा की जिंदगी में आपके पास कोई एक कला ऐसी है जो आपको हर दिन के काम से दूर ले जाकर, आपके सुकून को एक नया आयाम दे सकती है, तो उस कला को अपनाओ और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाओ। अतः लेखन एवं पठन में स्वाभाविक रुचि होने के कारण इन्होंने लेखन को अपने सुकून का हिस्सा बनाया। इसी के साथ छात्रावास की आबो-हवा में पलते-बढ़ते, इनके छिटपुट लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। आजकल प्रणव बैंगलोर में रहते हैं और “द ड्राफ्ट पेज (The Draft Page)” नामक एक संगठन में हिन्दी से जुड़े कलाकारों के बीच काफ़ी सक्रिय हैं। ‘एकान्त की गूँज’ इनकी पहली किताब है।
बिहार के भागलपुर ज़िले में पैदा हुए प्रणव पेशे से इंजीनियर हैं साथ ही इनकी रुचि कविताओं और कहानियों में है। इनकी परवरिश किसी एक शहर में नहीं बल्कि विभिन्न शहरों के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के छात्रावास में हुई। बड़े-बुज़ुर्ग या बड़े कलाकार अक्सर कहते मिलते है कि रोज़मर्रा की जिंदगी में आपके पास कोई एक कला ऐसी है जो आपको हर दिन के काम से दूर ले जाकर, आपके सुकून को एक नया आयाम दे सकती है, तो उस कला को अपनाओ और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाओ। अतः लेखन एवं पठन में स्वाभाविक रुचि होने के कारण इन्होंने लेखन को अपने सुकून का हिस्सा बनाया। इसी के साथ छात्रावास की आबो-हवा में पलते-बढ़ते, इनके छिटपुट लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। आजकल प्रणव बैंगलोर में रहते हैं और “द ड्राफ्ट पेज (The Draft Page)” नामक एक संगठन में हिन्दी से जुड़े कलाकारों के बीच काफ़ी सक्रिय हैं। ‘एकान्त की गूँज’ इनकी पहली किताब है।
मजाज़ और मीनाई के लखनऊ में जन्मे, नीरज के इटावा में बचपन बीता, वापस लखनऊ आकर विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की, ग़ालिब की दिल्ली से बड़े शहर की भीड़, प्राइवेट नौकरी का स्वाद, क्रांति का पहला नारा, और पुलिस का पहला डंडा – सारे तजुर्बे पाए। बचपन और डिग्री के बीच अनेक निजी, सामाजिक, राजनैतिक, मानसिक परिस्थितियों पर उम्र और अवस्थानुसार चिंतन-मनन किया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग ले कर काव्यपाठ, वाद – विवाद द्वारा न सिर्फ मंच और मनोरंजन का चस्का लगा, बल्कि रचनात्मकता और लेखन में सुधार और तीक्ष्ण्ता भी आती गयी। कवि सम्मेलनों में जाते रहते थे सो अनेक ख्याति प्राप्त कवियों से मेल-जोल रहा, आशीर्वाद भी पाया। क्रांतिकारी नाना, जमींदार बाबा, किसान पिता और संगीतकार माँ – इन सबकी संगति में अनेकानेक सबक सीखे – जीवन दर्शन से लेकर भौतिक सुख तक, और क्रांति नियोजन से लेकर सरल जीवन यापन तक। लेखन के साथ-साथ इन दिनों बैंगलोर में शायरी से जुड़े हुए कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। नौकरपेशा तो हैं, लेकिन वापस अपने गाँव जाकर खेती करना और पेड़ों की छाँव में बैठे-बैठे ही एक दिन अंतर्ध्यान होने का सपना अभी त्यागा नहीं है। ‘आफ़तनामा’ गौरव की पहली किताब है।