Nimboli

निम्बोली

रचनात्मकता की जादुई दुनिया में पहुँचने का
प्लेटफ़ॉर्म नंबर पौने दस

निम्बोली की शुरुआत पहले लॉकडाउन में हुई। उस वक़्त जब दुनिया थमी हुई थी। जब सारा शोर एम्बूलेंस के सायरनों में तब्दील हो चुका था। लोग घरों में घिरे हुए थे। तब एक छोटा सा आइडिया ये था कि जो लोग ठीक-ठाक अपने घरों में हैं उन्हें कम से कम किसी रचनात्मक काम में लगाया जाए। यूँ शुरुआत हुई निम्बोली की पहली ऑनलाइन पोएट्री वर्कशॉप की।और सिलसिला चल पड़ा…

निम्बोली

रचनात्मकता की जादुई दुनिया में पहुँचने का
प्लेटफ़ॉर्म नंबर पौने दस

निम्बोली की शुरुआत पहले लॉकडाउन में हुई। उस वक़्त जब दुनिया थमी हुई थी। जब सारा शोर एम्बूलेंस के सायरनों में तब्दील हो चुका था। लोग घरों में घिरे हुए थे। तब एक छोटा सा आइडिया ये था कि जो लोग ठीक-ठाक अपने घरों में हैं उन्हें कम से कम किसी रचनात्मक काम में लगाया जाए। यूँ शुरुआत हुई निंबोली की पहली ऑनलाइन पोएट्री वर्कशॉप की।और सिलसिला चल पड़ा…

गो आबले हैं पाँव में फिर भी ऐ रहरवो
मंज़िल की जुस्तुजू है तो जारी रहे सफ़र

नूर क़ुरैशी

मई 2020 में हमने निम्बोली का सबसे पहला बैच शुरू किया। अलग-अलग शहरों से पहले बैच में कुछ 14-15 लोग शामिल हुए। धीरे-धीरे यह संख्या पिछले दो सालों में 500 को पार कर चुकी है।  80+ अलग-अलग बैच में भारत के कई शहरों के साथ मेलबर्न, सिंगापुर, जर्मनी और प्राग से भी लोग शामिल हुए हैं। इनमें से कुछ लोगों की कविताएँ आप हमारे ब्लॉग ‘निम्बोली का गुच्छा’ में पढ़ सकते हैं। फिर कहानियों की वर्कशॉप भी शुरू हुई। और अब हम किताबों का प्रकाशन भी शुरू कर रहे हैं। 

सफ़र जारी है…

निम्बोली - कविताओं की वर्कशॉप

मैं लिखने की इच्छा से भरा हुआ हूँ, लेकिन शुरू करने की आशंका से घबराया हुआ’ इटली के महाकवि दान्ते ने ऐसा कुछ कहा था। हम भी तो ऐसे ही हैं, कितना कुछ सोच लेते हैं कि लिखेंगे, लिखते भी हैं, लेकिन पता नहीं वह क्या है जो हर बार छूट जाता है। हम अपने लिखे से बहुत कम ही संतुष्ट हो पाते हैं। वह संतुष्टि कहाँ और किसके पास मिलेगी और कब मिलेगी बस यही हम पता लगाते रह जाते हैं।  निम्बोली कार्यक्रम बस इसी बात के लिए एक छोटा प्रयास है, जिसके तहत हम कविताओं को पढ़ने, समझने, उसमें छिपे हुए ख़ज़ाने को ढूँढने का प्रयास करेंगे, लिखना भी शामिल होगा…अक्षर और शब्दों को लिखना कोई हाथ पकड़ कर भले ही सिखा सकता है, लेकिन कविताएँ लिखना हमें ख़ुद से ही सीखना होता है। लिखने से पहले हमें एक अच्छा पाठक बनना होगा, यह कार्यक्रम आपको इस प्रक्रिया में एक सहपाठी की तरह साथ देगा.

Le Jour (Day) (1891) by Odilon Redon. 

More:

 Original public domain image from National Gallery of Art
Le Jour (Day) (1891) by Odilon Redon. 

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 Original public domain image from National Gallery of Art

निम्बोली - कविताओं की वर्कशॉप

मैं लिखने की इच्छा से भरा हुआ हूँ, लेकिन शुरू करने की आशंका से घबराया हुआ’ इटली के महाकवि दान्ते ने ऐसा कुछ कहा था। हम भी तो ऐसे ही हैं, कितना कुछ सोच लेते हैं कि लिखेंगे, लिखते भी हैं, लेकिन पता नहीं वह क्या है जो हर बार छूट जाता है I हम अपने लिखे से बहुत कम ही संतुष्ट हो पाते हैंI वह संतुष्टि कहाँ और किसके पास मिलेगी और कब मिलेगी बस यही हम पता लगाते रह जाते हैंI निम्बोली कार्यक्रम बस इसी बात के लिए एक छोटा प्रयास है, जिसके तहत हम कविताओं को पढ़ने, समझने, उसमें छिपे हुए ख़ज़ाने को ढूँढने का प्रयास करेंगे, लिखना भी शामिल होगा…अक्षर और शब्दों को लिखना कोई हाथ पकड़ कर भले ही सिखा सकता है, लेकिन कविताएँ लिखना हमें ख़ुद से ही सीखना होता है I लिखने से पहले हमें एक अच्छा पाठक बनना होगा, यह कार्यक्रम आपको इस प्रक्रिया में एक सहपाठी की तरह साथ देगा.

Aconitum (Aconite or Monk's Hood) enlarged 6 times from Urformen der Kunst (1928) by Karl Blossfeldt. Original from The Rijksmuseum. Digitally enhanced by rawpixel.

तितिलियाँ - कहानियों की वर्कशॉप

हमारा हर एक पल कहानियों से ही भरा है। हर एक हथेली में एक कहानी ज़रूर बैठी होगी। तो ऐसे हर एक के पास कम से कम दो कहानियाँ तो होंगी ही। हथेलियों से उठकर उँगलियों की कोरों तक पहुँचने में इन कहानियों को काफ़ी जद्दोजहद होती है। लेकिन एक दिन ऐसा आता है जब इन उँगलियों से कहानियाँ बाहर निकलती हैं और तितली बनकर उड़ जाती है। तितलियों के उड़ने की अपनी कोई ध्वनि नहीं होती। दुनिया की सारी तितलियाँ वह कहानी है जो कही जानी अभी बाक़ी हैं। कहानी लिखना, यह जान लेना है कि तुम्हारी हथेली से भी एक तितली का जन्म हो सकता है। और उसे कहना तितली उड़ा देने जैसा है। क्या तुम्हारे कान पर कभी कोई तितली बैठी है? ‘तितिलियाँ’ वह जगह है जहाँ हम कहानियों को बुनने की बारीकियाँ समझेंगें, कहानियाँ पढ़ेंगें, सुनेंगें और सुनाएँगे…

गप्पेबाज़ी - बच्चों के साथ रचनात्मक लेखन कार्यशाला

होमवर्क से इतर बच्चों के पास लिखने के लिए बचता ही क्या है? बच्चों को लिखने का कहें तो वो टाल देते हैं कि – यार ! स्कूल में भी लिखो और बाहर भी लिखो ? ये क्या बात हुई भला? लेकिन बच्चों के पास तो गज़ब के आइडियाज़ हैं। जिन्हें वो अगर लिख दें तो बड़े सोच कर दंग रह जाएँ। बस उन्हीं सब बातों को बच्चों से मस्ती करते हुए करवा लेने का काम हम करते हैं। ताकी बच्चों को रचनात्मक लेखन से डर न लगे, बल्कि मज़ा आए और वे अपने मन की बातें खुल कर बिंदास हो कर लिख सकें।  इस वर्कशॉप में बच्चे सवाल पूछते हैं। जवाब खोजते हैं। गप्पे लड़ाते हैं। चित्र भी बनाते हैं। नाचते-कूदते भी हैं और हो-हल्ला मचाते हैं। कुल मिला कर 1-2 घंटे मौज करते हैं। बस इसी दौरान हम चुपके से उनसे कुछ लिखवा लेते हैं। और कहानियाँ और कविताएँ यूँ ही बन जाती हैं।

गप्पेबाज़ी - बच्चों के साथ रचनात्मक लेखन कार्यशाला

होमवर्क से इतर बच्चों के पास लिखने के लिए बचता ही क्या है? बच्चों को लिखने का कहें तो वो टाल देते हैं कि – यार ! स्कूल में भी लिखो और बाहर भी लिखो ? ये क्या बात हुई भला? लेकिन बच्चों के पास तो गज़ब के आइडियाज़ हैं। जिन्हें वो अगर लिख दें तो बड़े सोच कर दंग रह जाएँ। बस उन्हीं सब बातों को बच्चों से मस्ती करते हुए करवा लेने का काम हम करते हैं। ताकी बच्चों को रचनात्मक लेखन से डर न लगे, बल्कि मज़ा आए और वे अपने मन की बातें खुल कर बिंदास हो कर लिख सकें।  इस वर्कशॉप में बच्चे सवाल पूछते हैं। जवाब खोजते हैं। गप्पे लड़ाते हैं। चित्र भी बनाते हैं। नाचते-कूदते भी हैं और हो-हल्ला मचाते हैं। कुल मिला कर 1-2 घंटे मौज करते हैं। बस इसी दौरान हम चुपके से उनसे कुछ लिखवा लेते हैं। और कहानियाँ और कविताएँ यूँ ही बन जाती हैं।

एक किताब हमारे भीतर फैल जाती है वृक्ष सी, असंख्य बीजों की सम्भावना लिए
हम सब संतान है किसी न किसी किताब की

हेमन्त देवलेकर

निम्बोली प्रकाशन

भारत में ख़ुद की एक किताब छपवाना यूँ बहुत आसान लगता है। लेकिन है नहीं। अच्छे-अच्छों के पसीने निकल जाते हैं और कई लोग ख़ुद को ठगा हुआ भी महसूस करते हैं। वर्कशॉप शुरू करने के कुछ समय बाद हमें यह एहसास हुआ कि जो लोग अपनी किताबें छपवाना चाहते हैं उनकी मदद की जाए। उन्हें उचित दामों में बेहतर से बेहतर गुणवत्ता मुहैया करवाई जाए। तो बस ऐसे ही शुरू हुआ ‘निम्बोली प्रकाशन’। अगर आप अपनी किताब छपवाने की योजना बना रहे हैं तो एक बार हमसें बात कर लें