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हमारी किताबें

ख़ुद के अँधेरे - उपन्यास (2025)

मन के कोलाहल को शान्त करने के लिए व्यक्ति के पास सबसे अच्छा एक ही तरीक़ा है,अपने इर्द-गिर्द शान्ति की तलाश करना। यदि आन्तरिक शान्ति चाहता है तो बाहर शान्ति की खोज करना। यदि भीतर प्रकाश चाहता है तो उसे प्रकाश भी भीतर ढूँढना होगा। लेकिन क्या हो यदि भीतर ही अंधकार हो? यह कहानी उसी अंधकार को ढूँढने और जीतने का सफ़र है। हर एक किरदार की बनावट और सजावट यह बताती है कि कहानी में उनकी कितनी आवश्यकता है। आधुनिक युग के सबसे बड़े अभिनेता के तौर पर उभरे मोबाइल फ़ोन द्वारा बयाँ की गयी हर एक घटना, चाहे वह दोस्ती की हो या फिर सियासत की,पिता के बड़प्पन की हो या युवा अवस्था की ज़िद की। शहर और गाँव की हो या जाति भेदभाव की। हर बार आपको आपके मन के अँधेरों, अपनों के रिश्तों तथा मानवता की सौंधी ख़ुशबू से अवगत करवाती रहेगी। किसी भाषायी करिश्मे की बजाय आसान भाषा में आपसे संवाद करेगी, जिस भाषा में आप अपनों से संवाद करते हैं। जहाँ कई जगह चुटकीले व्यंग्य होंगे और कहीं आसानी से वही बात कह दी होगी जो काफ़ी अरसे से आप कहना चाहते हैं। रिश्तों की बुनावट के हर उतार-चढ़ाव से परिचय करवाती यह कहानी आपको उन सभी रास्तों से ले जाती है जहाँ-जहाँ से आप जीवन में कभी न कभी ज़रूर गुज़रे होंगे। उन लम्हों से मिलवाएगी जिन लम्हों में आपने ख़ुशी महसूस की होगी और उनको याद करके उदासी। हेमन्त बड़ोदिया ने हर शब्द को उसी भाँति काग़ज़ पर उतार दिया है जैसा चित्र उनके मानस पटल पर चित्रित हुआ। आप सब भी इस सफ़र का आनन्द लीजिए और ‘ख़ुद के अँधेरे’ जानने की कोशिश कीजिए। – दिव्य कमलध्वज

ख़ुद के अँधेरे – उपन्यास
लेखक – हेमन्त बड़ोदिया 
मूल्य –199/- रू.

 

एटम ग्रह का देवता - न कविता, न कहानी (2025)

इस किताब में छोटे-छोटे दृश्यात्मक टुकड़े हैं जो अपने-आप में मुकम्मल हैं–जो कहानी कहाते हुए भी कथा नहीं हैं और गीत में ढलते हुए भी कविता नहीं हैं। लालित्य लिए हैं मगर गद्य-गीत भी नहीं है। डायरी भी नहीं हैं, पत्र होकर भी पत्र नहीं–ये एक लेखक के निर्विघ्न एकान्त से उपजे कुछ चित्रलिखित स्वप्न हैं जो विस्तार पाकर पाठक को साथ लेकर जंगलों में, नदियों में, पहाड़ों में, अन्तरिक्ष में खो जाते हैं। इस संकलन में भाषा, जादू का मायावी रूप धरकर नहीं आती, वह बादलों, जुगनुओं, बरसात, खरगोशों, सिसकियों, खिलखिलाहटों और मन से निकली नि:शब्द प्रार्थनाओं की तरह सहज आती है। यह भाषा हवा की तरह घूमती ऐसे-ऐसे शब्दचित्र रचती है और आप किसी ‘वंडरलैंड’ में ख़ुद को पाते हो। अपने आप को पढ़वा ले जाने के लिए किसी कृति का कविता या कहानी होना ज़रूरी नहीं है, वह सीधे मन और अवचेतन से निकली अभिव्यक्ति हो तो वह तरल बन जाती है जिसे किसी भी पात्र में डाल दो वह मनचाहा रूप ले लेगी। 

एटम ग्रह का देवता – न कविता, न कहानी
लेखक –  बी.एस.शुभ्रम
मूल्य – 199/- रू. 

हृदया - उपन्यास (2025)

मेरे मन में इंतज़ार की जो फिल्म चल रही थी, ये कॉल शायद उसमें एक इंटरवल था या कोई ब्रेक। और उस ब्रेक में मुझे एक ऐसा विज्ञापन दिख गया था, जो मुझे महसूस करा गया था कि सिर्फ़ मैं अकेला नहीं हूँ, इस दुनिया में, जो किसी के इंतज़ार में हूँ। हज़ारों-लाखों लोग हैं, इस पूरी धरती पर, जो इस पल किसी के कॉल का, मैसेज का या किसी के आने का इंतज़ार कर रहे होंगे। यह सारे लोग मुझसे तो काफ़ी बेहतर हैं, इस इंतज़ार की कला में। न जाने उन्होंने इतना सब्र करना कहाँ से सीखा है। मुझे बस यही नहीं आया। नहीं होता सब्र, सबको कहता फिरता हूँ कि मुझसे इंतज़ार नहीं किया जाता। बल्कि सच तो ये है कि इंतज़ार ही करता रहता हूँ हमेशा। भले ही मजबूरन, करना ही पड़ता है। सब्र करना नहीं आता और शायद मुझे ये अभी इस वक़्त, ये लिखते समय समझ आया। दो बजकर उनसठ मिनट पर एक कॉल आया। मैं तब बाहर जाने की तैयारी कर रहा था। मैंने कॉल उठाया, सामने से आवाज़ आई…

हृदया- उपन्यास
लेखक – काव्यानुराग
मूल्य –199/- रू.

 

गुज़र - कविता संग्रह (2025)

यह फ़ैसला लेना कि मैं अपना लिखा किताब के ज़रिए आप तक पहुँचाऊँ, आसान नहीं था। इस किताब में शायरी की शक़्ल में मैं ख़ुद आपके सामने हूँ। हर एक शेर, नज़्म, ग़ज़ल मेरी ज़िन्दगी का एक बीता हुआ पल है, कोई एहसास है जिसमें कहीं ना कहीं मैं छिपा हुआ हूँ। मेरी आप-बीती है, मेरे दिल की तमन्नाएँ हैं। मेरे अधूरे ख़्वाब हैं। मैं ख़ुद हूँ। हर लफ़्ज़ में कोई कहानी है, कोई दास्ताँ है जो मेरे होठों से आपके कानों तक, मेरी क़लम से आपके दिलों तक पहुँचना चाहती है। कोशिश की है, नतीज़ा वक़्त बताएगा। उम्मीद है, आपको पसन्द आएगा। कैसा लगा, बताइएगा ज़रूर, इन्तिज़ार रहेगा आपके फीडबैक का।

गुज़र
लेखक –  मक़सूद अहमद
मूल्य – 199/- रू. 

यादों का मोहल्ला - कविता संग्रह (2024)

अनन्त गौरव, जिला हरदोई, उत्तर प्रदेश के एक साधारण परिवार से आते हैं। बचपन से हिन्दी से प्रेम के कारण कविताओं और कहानियों से अत्यन्त स्नेह रहा है। मदन मोहन मालवीय, गोरखपुर से विद्युत अभियंत्रण में स्नातक और नयी दिल्ली से व्यापार प्रबंधन में परा स्नातक करने के उपरान्त लेखन में रुझान गया और थोड़ा-बहुत लिखने में हाथ आजमा रहे हैं। ये कविता संग्रह उनकी पहली किताब है। पेशे से एक बैंकर हैं और एक राष्ट्रीयकृत बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं और बैंगलोर में रहते हैं।

यादों का मोहल्ला – कविता संग्रह 
लेखक – प्रणव कुमार
मूल्य –199/- रू.

 

दुःख के रंग (2024)

दुःख जीने के तरीक़े हमारे जीवन में कितना असर रखते हैं, यह किताब मानसिक स्वास्थ्य के उस पहलू को छूने की कोशिश करती है। किसी का प्रेम में विफल हो जाना, किसी दोस्त को खो देना, मन का चाहा ना होना, किसी की मृत्यु का दुःख, और वह सभी दुःख जो हमारी कल्पनाओं से परे हों, इस किताब की कहानियाँ उन सभी दुःखों को जीने के तरीक़ों को ढूँढती हैं। इस किताब का मक़सद, किसी भी तरह की मानसिक स्वास्थ्य की समस्या को हल करना नहीं है, ना ही उसके इलाज के तरीक़ों को सही या ग़लत के दायरे में तोलना है। मक़सद है तो सिर्फ़ यह समझने की कोशिश करना कि जो कुछ भी इन कहानियों में लिखा है, क्या ऐसा हो सकता है?

दुःख के रंग 
लेखक – अंकित गुप्ता ‘असीर’
मूल्य – 199/- रू. 

एकान्त की गूँज – उपन्यास (2024)

पुराने जिये में कुछ नये का चित्र बहुत सुन्दर दिखाई देता है। अब जब उन सुन्दर चित्रों को लिखने की कोशिश कर रहा हूँ पर हर बार किसी न किसी चीज़ पर अटक जाता। यूँ तो मेरे पास इस कहानी के कई छोर हैं पर मैं इस असमंजस में हूँ कि किस छोर को पकड़ कर इस कहानी की शुरुआत करूँ। मेरे साथ ये पहले भी हो चुका है। मैं हर बार अपनी पसंद का कोई छोर चुन लेता और लिखना शुरू कर देता पर लिखने के कुछ ही पल बाद एक ऐसे मोड़ पर ख़ुद को खड़ा पता हूँ जिसके आगे जाना मुश्किल सा लगता है। मानो उस मोड़ के आगे रास्ते ही ख़त्म हो गए हों और सामने एक बड़ी दीवार खड़ी हो जिसे लाँघना मेरे बस की बात न हो। परन्तु एक लेखक होने के कारण मैं ऐसी किसी भी दीवार को अपने काल्पनिक पैरों से लाँघने की क्षमता रखता हूँ। मैं साधारण लेखक होने के साथ-साथ बहुत डरपोक भी हूँ। मैं अपने लिखे से कभी कभार डर जाता हूँ। मुझे डर इस बात का होता है कि कहीं मेरी कहानी किसी अनजान मोड़ पर रुक न जाये। इसलिए इस बार मैं अपने पसंद का छोर नहीं बल्कि अक्कड़-बक्कड़ करके कोई भी एक छोर चुन लूंगा जिसके अंत का मुझे पता न हो।

एकान्त की गूँज
लेखक – प्रणव कुमार
मूल्य –180/- रू.

 

आफ़तनामा (2024)

आफ़तनामा को कुछ लोग तब से जानते हैं जब हम इसमें न छप पाने वाली पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में ले के जगह जगह बहुत शान से सुनाया करते थे. आप में से कई ने तो ढंग से ख़ाका उड़ाया, कुछ ने हौसला-अफ़ज़ाई भी की. कुछ ने हाथ पकड़ के सही महफ़िलों में बिठाया – सुनाने के लिए नहीं, सुनने के लिए – तो कुछ ने गुरु बन के कई अदबी सबक दिए और कान पकड़ के भी बहुत कुछ सिखाया. सो वो पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में भले ‘आफतनामा’ में न मिलें (और ये ठीक भी है), पर फिर भी डॉकी का सफ़र कैसा रहा ये बता पाने के लिए काफ़ी कुछ दिल के करीब की चीज़ें भी जस की तस पेश कर डाली हैं. दो दोस्त साथ बैठ के जब बातें कर रहे होते हैं, हर दूसरी बात पे “वाह वाह” तो नहीं करते हैं. ध्यान से ज़रूर सुनते हैं कि भाई कहना क्या चाहता है. सो यहां न तो आज-कल के सोशल मीडिया में प्रचलित शॉक-वैल्यू वाली शायरी मिलेगी, न ही हम ने ये चाहा भी है कि आप पंचलाइन के इंतज़ार में रहें. सरल सी बातें हैं, जिन्हें अल्हड़ अंदाज़ में बस – कह दिया है. – Writer’s Note मीर, मजाज़ और मीनाई के लखनऊ में जन्म, गोपालदास नीरज के इटावा में परवरिश, और उनके साथ ही, काका हाथरसी, उर्मिलेश, हरिओम पवार के चरणस्पर्श करने का सौभाग्य – इस सब को Dockie जी अपना निजी खज़ाना मानते हैं. उनकी कला और उनके लेखन में इंशा, फ़ैज़ और जॉन से ले के ट्रक के पीछे वाली शायरी तक की झलक शायद आपको मिल जायेगी। खुद को संजीदा से ज़्यादा एक मनोरंजक कवि बोलना पसंन्द करते हैं। कहते हैं कि, “किताब में छपी रचनाएं एक तरफ हैं, और मंच पे कवितापाठ करने का उत्साह एक तरफ। इन दोनों में से किसी भी एक जगह आपसे मिल पाए, तो बहुत ख़ुशी होगी”

आफ़तनामा
लेखक – डॉकी
मूल्य – 199/- रू. 

आफ़तनामा (2023)

डॉकी

आफ़तनामा को कुछ लोग तब से जानते हैं जब हम इसमें न छप पाने वाली पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में ले के जगह जगह बहुत शान से सुनाया करते थे. आप में से कई ने तो ढंग से ख़ाका उड़ाया, कुछ ने हौसला-अफ़ज़ाई भी की. कुछ ने हाथ पकड़ के सही महफ़िलों में बिठाया – सुनाने के लिए नहीं, सुनने के लिए – तो कुछ ने गुरु बन के कई अदबी सबक दिए और कान पकड़ के भी बहुत कुछ सिखाया. सो वो पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में भले ‘आफतनामा’ में न मिलें (और ये ठीक भी है), पर फिर भी डॉकी का सफ़र कैसा रहा ये बता पाने के लिए काफ़ी कुछ दिल के करीब की चीज़ें भी जस की तस पेश कर डाली हैं. दो दोस्त साथ बैठ के जब बातें कर रहे होते हैं, हर दूसरी बात पे “वाह वाह” तो नहीं करते हैं. ध्यान से ज़रूर सुनते हैं कि भाई कहना क्या चाहता है. सो यहां न तो आज-कल के सोशल मीडिया में प्रचलित शॉक-वैल्यू वाली शायरी मिलेगी, न ही हम ने ये चाहा भी है कि आप पंचलाइन के इंतज़ार में रहें. सरल सी बातें हैं, जिन्हें अल्हड़ अंदाज़ में बस – कह दिया है।

आफ़तनामा
लेखक – डॉकी 
मूल्य – 199/- रू. 

आफ़तनामा (2023)

डॉकी

आफ़तनामा को कुछ लोग तब से जानते हैं जब हम इसमें न छप पाने वाली पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में ले के जगह जगह बहुत शान से सुनाया करते थे. आप में से कई ने तो ढंग से ख़ाका उड़ाया, कुछ ने हौसला-अफ़ज़ाई भी की. कुछ ने हाथ पकड़ के सही महफ़िलों में बिठाया – सुनाने के लिए नहीं, सुनने के लिए – तो कुछ ने गुरु बन के कई अदबी सबक दिए और कान पकड़ के भी बहुत कुछ सिखाया. सो वो पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में भले ‘आफतनामा’ में न मिलें (और ये ठीक भी है), पर फिर भी डॉकी का सफ़र कैसा रहा ये बता पाने के लिए काफ़ी कुछ दिल के करीब की चीज़ें भी जस की तस पेश कर डाली हैं. दो दोस्त साथ बैठ के जब बातें कर रहे होते हैं, हर दूसरी बात पे “वाह वाह” तो नहीं करते हैं. ध्यान से ज़रूर सुनते हैं कि भाई कहना क्या चाहता है. सो यहां न तो आज-कल के सोशल मीडिया में प्रचलित शॉक-वैल्यू वाली शायरी मिलेगी, न ही हम ने ये चाहा भी है कि आप पंचलाइन के इंतज़ार में रहें. सरल सी बातें हैं, जिन्हें अल्हड़ अंदाज़ में बस – कह दिया है।

आफ़तनामा
लेखक – डॉकी 
मूल्य – 199/- रू.