Nimboli

हमारी किताबें

दुःख के रंग (2024)

दुःख जीने के तरीक़े हमारे जीवन में कितना असर रखते हैं, यह किताब मानसिक स्वास्थ्य के उस पहलू को छूने की कोशिश करती है। किसी का प्रेम में विफल हो जाना, किसी दोस्त को खो देना, मन का चाहा ना होना, किसी की मृत्यु का दुःख, और वह सभी दुःख जो हमारी कल्पनाओं से परे हों, इस किताब की कहानियाँ उन सभी दुःखों को जीने के तरीक़ों को ढूँढती हैं। इस किताब का मक़सद, किसी भी तरह की मानसिक स्वास्थ्य की समस्या को हल करना नहीं है, ना ही उसके इलाज के तरीक़ों को सही या ग़लत के दायरे में तोलना है। मक़सद है तो सिर्फ़ यह समझने की कोशिश करना कि जो कुछ भी इन कहानियों में लिखा है, क्या ऐसा हो सकता है?

दुःख के रंग 
लेखक – अंकित गुप्ता ‘असीर’
मूल्य – 199/- रू. 

एकान्त की गूँज – उपन्यास (2024)

पुराने जिये में कुछ नये का चित्र बहुत सुन्दर दिखाई देता है। अब जब उन सुन्दर चित्रों को लिखने की कोशिश कर रहा हूँ पर हर बार किसी न किसी चीज़ पर अटक जाता। यूँ तो मेरे पास इस कहानी के कई छोर हैं पर मैं इस असमंजस में हूँ कि किस छोर को पकड़ कर इस कहानी की शुरुआत करूँ। मेरे साथ ये पहले भी हो चुका है। मैं हर बार अपनी पसंद का कोई छोर चुन लेता और लिखना शुरू कर देता पर लिखने के कुछ ही पल बाद एक ऐसे मोड़ पर ख़ुद को खड़ा पता हूँ जिसके आगे जाना मुश्किल सा लगता है। मानो उस मोड़ के आगे रास्ते ही ख़त्म हो गए हों और सामने एक बड़ी दीवार खड़ी हो जिसे लाँघना मेरे बस की बात न हो। परन्तु एक लेखक होने के कारण मैं ऐसी किसी भी दीवार को अपने काल्पनिक पैरों से लाँघने की क्षमता रखता हूँ। मैं साधारण लेखक होने के साथ-साथ बहुत डरपोक भी हूँ। मैं अपने लिखे से कभी कभार डर जाता हूँ। मुझे डर इस बात का होता है कि कहीं मेरी कहानी किसी अनजान मोड़ पर रुक न जाये। इसलिए इस बार मैं अपने पसंद का छोर नहीं बल्कि अक्कड़-बक्कड़ करके कोई भी एक छोर चुन लूंगा जिसके अंत का मुझे पता न हो।

एकान्त की गूँज
लेखक – प्रणव कुमार
मूल्य –180/- रू.

 

दुःख के रंग (2024)

आफ़तनामा को कुछ लोग तब से जानते हैं जब हम इसमें न छप पाने वाली पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में ले के जगह जगह बहुत शान से सुनाया करते थे. आप में से कई ने तो ढंग से ख़ाका उड़ाया, कुछ ने हौसला-अफ़ज़ाई भी की. कुछ ने हाथ पकड़ के सही महफ़िलों में बिठाया – सुनाने के लिए नहीं, सुनने के लिए – तो कुछ ने गुरु बन के कई अदबी सबक दिए और कान पकड़ के भी बहुत कुछ सिखाया. सो वो पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में भले ‘आफतनामा’ में न मिलें (और ये ठीक भी है), पर फिर भी डॉकी का सफ़र कैसा रहा ये बता पाने के लिए काफ़ी कुछ दिल के करीब की चीज़ें भी जस की तस पेश कर डाली हैं. दो दोस्त साथ बैठ के जब बातें कर रहे होते हैं, हर दूसरी बात पे “वाह वाह” तो नहीं करते हैं. ध्यान से ज़रूर सुनते हैं कि भाई कहना क्या चाहता है. सो यहां न तो आज-कल के सोशल मीडिया में प्रचलित शॉक-वैल्यू वाली शायरी मिलेगी, न ही हम ने ये चाहा भी है कि आप पंचलाइन के इंतज़ार में रहें. सरल सी बातें हैं, जिन्हें अल्हड़ अंदाज़ में बस – कह दिया है. – Writer’s Note मीर, मजाज़ और मीनाई के लखनऊ में जन्म, गोपालदास नीरज के इटावा में परवरिश, और उनके साथ ही, काका हाथरसी, उर्मिलेश, हरिओम पवार के चरणस्पर्श करने का सौभाग्य – इस सब को Dockie जी अपना निजी खज़ाना मानते हैं. उनकी कला और उनके लेखन में इंशा, फ़ैज़ और जॉन से ले के ट्रक के पीछे वाली शायरी तक की झलक शायद आपको मिल जायेगी। खुद को संजीदा से ज़्यादा एक मनोरंजक कवि बोलना पसंन्द करते हैं। कहते हैं कि, “किताब में छपी रचनाएं एक तरफ हैं, और मंच पे कवितापाठ करने का उत्साह एक तरफ। इन दोनों में से किसी भी एक जगह आपसे मिल पाए, तो बहुत ख़ुशी होगी”

आफ़तनामा
लेखक – डॉकी
मूल्य – 199/- रू. 

आफ़तनामा (2023)

डॉकी

आफ़तनामा को कुछ लोग तब से जानते हैं जब हम इसमें न छप पाने वाली पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में ले के जगह जगह बहुत शान से सुनाया करते थे. आप में से कई ने तो ढंग से ख़ाका उड़ाया, कुछ ने हौसला-अफ़ज़ाई भी की. कुछ ने हाथ पकड़ के सही महफ़िलों में बिठाया – सुनाने के लिए नहीं, सुनने के लिए – तो कुछ ने गुरु बन के कई अदबी सबक दिए और कान पकड़ के भी बहुत कुछ सिखाया. सो वो पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में भले ‘आफतनामा’ में न मिलें (और ये ठीक भी है), पर फिर भी डॉकी का सफ़र कैसा रहा ये बता पाने के लिए काफ़ी कुछ दिल के करीब की चीज़ें भी जस की तस पेश कर डाली हैं. दो दोस्त साथ बैठ के जब बातें कर रहे होते हैं, हर दूसरी बात पे “वाह वाह” तो नहीं करते हैं. ध्यान से ज़रूर सुनते हैं कि भाई कहना क्या चाहता है. सो यहां न तो आज-कल के सोशल मीडिया में प्रचलित शॉक-वैल्यू वाली शायरी मिलेगी, न ही हम ने ये चाहा भी है कि आप पंचलाइन के इंतज़ार में रहें. सरल सी बातें हैं, जिन्हें अल्हड़ अंदाज़ में बस – कह दिया है।

आफ़तनामा
लेखक – डॉकी 
मूल्य – 199/- रू. 

आफ़तनामा (2023)

डॉकी

आफ़तनामा को कुछ लोग तब से जानते हैं जब हम इसमें न छप पाने वाली पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में ले के जगह जगह बहुत शान से सुनाया करते थे. आप में से कई ने तो ढंग से ख़ाका उड़ाया, कुछ ने हौसला-अफ़ज़ाई भी की. कुछ ने हाथ पकड़ के सही महफ़िलों में बिठाया – सुनाने के लिए नहीं, सुनने के लिए – तो कुछ ने गुरु बन के कई अदबी सबक दिए और कान पकड़ के भी बहुत कुछ सिखाया. सो वो पहली दर्ज़न ग़ज़लें, नज़्में भले ‘आफतनामा’ में न मिलें (और ये ठीक भी है), पर फिर भी डॉकी का सफ़र कैसा रहा ये बता पाने के लिए काफ़ी कुछ दिल के करीब की चीज़ें भी जस की तस पेश कर डाली हैं. दो दोस्त साथ बैठ के जब बातें कर रहे होते हैं, हर दूसरी बात पे “वाह वाह” तो नहीं करते हैं. ध्यान से ज़रूर सुनते हैं कि भाई कहना क्या चाहता है. सो यहां न तो आज-कल के सोशल मीडिया में प्रचलित शॉक-वैल्यू वाली शायरी मिलेगी, न ही हम ने ये चाहा भी है कि आप पंचलाइन के इंतज़ार में रहें. सरल सी बातें हैं, जिन्हें अल्हड़ अंदाज़ में बस – कह दिया है।

आफ़तनामा
लेखक – डॉकी 
मूल्य – 199/- रू.